Thursday, January 23, 2014

केवल तुम और मैं ...

सिन्दूरी सांझ 
सुनहरे रंग लिए 
धीमे धीमे 
यादों की किरणें बिखेर रही थी, 
नीले चादर से आसमां 
मुझे ढकने को 
बेताब हो रही थी, 
सुर्ख मन 
एक ही रट लगाये हुई थी, 
कहीं से वो वक़्त लौट आये
जो मैंने तेरे साथ बिताई थी 
पर वक़्त ने 
भला कभी सुनी है 
तो आज कैसे सुनता 
बस मैं सोचती रह गयी 
और वक़्त 
फिर से आ धमका 
पर इसबार मैंने 
आहिस्ते खोली खिड़कियाँ मन की 
ताकि कोई झाँक न ले 
मुझमें और मेरी यादें में 
कोई बाँट न ले
इन लम्हों को 
जिसमें मैं चाहती हूँ  
केवल तुम रहो साथ मेरे
केवल तुम और मैं !!