Thursday, January 23, 2014

कल्पना के पन्नो से ...

तेरे यादों का बस्ता 
सँभालते हुए 
अंतर्मन को होती है, 
एक असीम सी 
सुखद अनुभूति, 
बस्ते के 
हर हिस्से के 
जर्रे जर्रे में 
चकमता आफ़ताब का नूर
जैसे हर पन्नों पर 
मौजूद हो तुम, 
जिसे जब चाहा 
बटोरकर 
समेट लिया खुद में,
ना किसी ने रोका 
न टोका ,
बरसों तक 
इसी वादे के साथ 
तेरे साँसों के साथ 
बंधे रहेंगे हम,
 
जानते हो 
बहुत गहरे रंग छोड़े हैं प्रेम ने 
पुराने कुछ लम्हों में तेरे, 
जैसे 
रोकर मुस्कुराना,
ग़मों से लड़ना 
और फिर उसी को जीत लाना, 
ख्वाबों संग फड़फड़ाना 
और उसी फड़फड़ाते परों से 
आसमां को नाप लाना,
और ऐसे कई अनगिनत रंग 
 पर ज़रा ठहरो 
भागो न ऐसे 
मैं खोलू और गठरिया
जो कह गए थे, 
फुसफुसाते हुए लम्हे सुहाने, 
दूषित बड़ी है फिजाये, 
जरा सम्भलकर
धीमे धीमे साँसों लेना और छोड़ना 
क्योंकि मुझे 
तुम्हे ही सहेजना है
अपने कल्पना के पन्नो से 
जो हमारी कुछ कही अनकही यादें से  
थाम के हाँथ निकलना चाहता है !!

No comments: