मैंने देखा है,
रेंगते हुए उन पहाड़ो को,
जो अपनी हिम्मत तले
टकराते है उन तुफानो से,
जो
उसके वजूद को मिटाने
बिन दस्तक
टूट पड़ते हैं उसपे,
पर
जब वही पहाड़ उगलता है लावा
अपने ह्रदय से
तब दूर दूर तक फैलती है, चिंगारी उसकी
जो हमें
उसके ताकत से रुबरु कराती है,
देखो
आज वही मूक बनकर
अपने निशां को खत्म होते देख कर
उफ्फ़ भी न करता है,
ये वेदना कौन सुनेगा उसका ?
तू या मैं
या अपने ही अस्तिव को
बचाती ये प्रकृति !!
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